Saturday, March 14, 2009

रघुवंश श्लोक 51 से 60 हिन्दी पद्यानुवाद ..अनुवादक प्रो सी बी श्रीवास्तव

सेकान्ते मुनिकन्याभिस्तत्क्षणोिज्झतवृक्षकम् ।
विÜवासाय विहंगानामालवालाम्बुपायिनाम् ।।
मुनिकन्यायें सींच तरू उन्हें गई झट त्याग
जिससे निर्भय हो विहंग पान करें जल भाग ।। 51।।

आतपात्ययसंक्षिप्तनीवारासु निषादिभि: ।
मृगैर्वर्तितरोमन्धमुटजा³गनभूमिषु ।।
रोमन्थन करते हनिण प्रांगण में मिल साथ
जहॉं दिन ढले अन्न को रहे समेट निषाद ।। 52।।

अभ्युित्थताग्निपिशुनैरतिथीनाश्रमोन्मुखान् ।
पुनानं पवनोद्धूतैधूZमैराहुतिगन्धिभि: ।।
आहूति गंधी पवन से धूम जहॉं गतिवान
अग्नि शिखा शुचि अतिथि ने आश्रम को पहचान ।। 53।।

अथ यन्तारमादिश्य धुर्यािन्वश्रामयेति स: ।
तामवरोहयत्पत्नीं रथादवततार च ।।
अश्वों को तब थामनें दे सारथि को हाथ
राजा रथ से उतर गये रानी को ले साथ ।। 54।।





तस्मै सभ्या: सभार्याय गोप्त्रे गुप्ततमेिन्द्रया: ।
अहZणामहZते चक्रुर्मुनयो नयचक्षुषे ।।
सपत्नीक उस न्यायी से , जो रक्षक विख्यात
सभी जितेिन्द्रय मुनियों ने की स्वागत कर बात ।। 55।।

विधे: सायंतनस्यान्ते स ददशZ तपोनिधिम् ।
अन्वासितमरून्धत्या स्वाहयेव हविभुZजम् ।।
अरून्धिती गुरू देव के सन्धया वन्दन बाद
दशZन पायें यों यथा स्वाहा - हविभुज साथ ।। 56।।

तयोर्जगृहतु: पादान्राजा राज्ञी च मागधी ।
तौ गुरूर्गुरूपत्नी च प्रीत्या प्रतिननन्दतु: ।।
राजा रानी ने किया उनको चरण प्रणाम
गुरू - गुरूपत्नो ने दिया आशीZवाद ललाम ।। 57।।

तमातिथ्यक्रियाशान्तरथक्षोभपरिश्रमम् ।
पप्रच्छ कुशलं राज्ये राज्याश्रममुनि मुनि: ।।
नुप से , पा आतिथ्य यो जिसकी मिटी थकान
मुनि ने पूंछी राज्य कुशल - क्षेम दे मान ।। 58।।

अथाथर्वनिधेस्तस्य विजितारिपुर: पुर: ।
अथ्र्यामर्थपतिर्वाचमाददे वद्तां वर: ।।
धर्म पंथ पालक नृप ‘शत्रु - विजेता ‘शूर
तब गुरू से बोले वचन आदर से भरपूर ।। 59।।

उपपन्नं ननु शिवं सप्तस्व³ेगषु यस्य मे ।
दैवीनां मानुषीणां च प्रतिहर्ता त्वमापदाम् ।।
गुरूवर है सब कुशलता प्रभुके पुण्य प्रताप
मुझ जिसके हर कष्ट के प्रतिहर्ता है आप ।। 60।।

No comments: