Hindi poetic translation of great Sanskrit books.. Kalidas is considered as the greatest Indian poet of Sanskrit. Meghdootam and Raghuvansham are two of his world fame books. Shreemadbhagwat Geeta is the greatest spiritual book the world has ever known. These books are in Sanskrit.Prof C.B.Shrivastava of Jabalpur has translated Meghdootam , Raghuvansham , and Bhagwat Geeta in Hindi poetry . Mr Shrivastava told that he is in search of a reputed publisher forthese books.
Sunday, December 27, 2009
हिन्दी पद्यानुवाद मेघदूतम् श्लोक ५६ से ६०
हिन्दी पद्यानुवाद मेघदूतम् श्लोक ५६ से ६०
पद्यानुवादक प्रो.सी. बी. श्रीवास्तव विदग्ध
तं चेद वायौ सरति सरलस्कन्धसंघट्टजन्मा
बाधेतोल्काक्षपितचमरीबालभारो दवाग्निः
अर्हस्य एनं शमयितुम अलं वारिधारासहस्रैर
आपन्नार्तिप्रशमनफलाः संपदो ह्य उत्तमानाम॥१.५६॥
आसीन कस्तूरिमृग नाभि की गंध
से रम्य जिसकी शिलायें सुगंधित
उसी जान्हवी के प्रभव स्त्रोत गिरि जो
हिमालय धवल हिम शिखर सतत मंडित
पहँच कर वहाँ मार्ग श्रम को मिटाने
किसी श्रंग पर लग्न लोगे सहारा
तो शिव के धवल वृषभ के श्रंग में लग्न
कर्दम सदृश रूप होगा तुम्हारा
ये संरम्भोत्पतनरभसाः स्वाङ्गभङ्गाय तस्मिन
मुक्ताध्वानं सपदि शरभा लङ्घयेयुर भवन्तम
तान कुर्वीथास तुमुलकरकावृष्टिपातावकीर्णन
के वा न स्युः परिभवपदं निष्फलारम्भयत्नाः॥१.५७॥
तभी यदि प्रभंजन चले , वृक्ष रगड़ें
औ" घर्षण जनित दाव वन को जलायें
ज्वालायें यदि क्लेश दें चमरि गौ को
तथा पुच्छ के केश दल झुलस जायें
उचित तब तुम्हें तात ! जलधार वर्षण
अनल को बुझा जो सुखद शांति लाये
सफलता यही श्रेष्ठ की संपदा की
समय पर दुखी आर्त के काम आये
शब्दार्थ ... प्रभंजन... तेज हवा , आंधी
घर्षण जनित दाव ... वृक्षो के परस्पर घर्षण से उत्पन्न आग
चमरि गौ ... चमरी गाय जिसकी पूंछ के सफेद बालों से चौरी बनती है
तत्र व्यक्तं दृषदि चरणन्यासम अर्धेन्दुमौलेः
शश्वत सिद्धैर उपचितबलिं भक्तिनम्रः परीयाः
यस्मिन दृष्टे करणविगमाद ऊर्ध्वम उद्धूतपापाः
कल्पिष्यन्ते स्थिरगणपदप्राप्तये श्रद्दधानाः॥१.५८॥
आवेश में किन्तु भगते उछलते
शरभ स्वयंघाती करें आक्रमण जो
समझकर कि तुम मार्ग के बीच में आ ,
अचानक स्वयं वहाँ से हट गये हो
तो कर उपल वृष्टि गंभीर उन पर
उन्हें ताड़ना दे , हटा दूर देना
भला निरर्थक यत्नकारी जनों पर
कहां , कौन ऐसा कभी जो हँसे न ?
शब्दार्थ ..शरभ... एक जाति के वन्य जीव , हाथी का बच्चा
शब्दायन्ते मधुरम अनिलैः कीचकाः पूर्यमाणाः
संरक्ताभिस त्रिपुरविजयो गीयते किंनराभिः
निर्ह्रादस ते मुरज इव चेत कन्दरेषु ध्वनिः स्यात
संगीतार्थो ननु पशुपतेस तत्र भावी समग्रः॥१.५९॥
वहाँ शिला अंकित , सतत सिद्ध पूजित ,
चरण चिन्ह शिव के परम भाग्यकारी
करना परीया विनत भावना से
वे हैं पुण्यदायी सकल पापहारी
जिनके दरश मात्र से भक्तजन पाप
से मुक्त हो , जगत से मुक्ति पाते
तज देह को , मृत्यु के बाद दुर्लभ
अमरगण पद प्राप्ति अधिकार पाते
प्रालेयाद्रेर उपतटम अतिक्रम्य तांस तान विशेषान
हंसद्वारं भृगुपतियशोवर्त्म यत क्रौञ्चरन्ध्रम
तेनोदीचीं दिशम अनुसरेस तिर्यग आयामशोभी
श्यामः पादो बलिनियमनाभ्युद्यतस्येव विष्णोः॥१.६०॥
जहां वेणुवन मधु पवन के मिलन से
सुरीली सतत सौम्य ! वंशी बजाता !
सुसंगीत में रत जहाँ किन्नरीदल
कि त्रिपुरारि शिव के विजय गीत गाता
वहाँ यदि मुरजताल सम गर्जना तव
गुहा कन्दरा में गँभीरा ध्वनित हो
तो तब सत्य प्रिय पशुपति अर्चना में
सुसंगीत की विधि सकल पूर्ण इति हो
शब्दार्थ .. मुरजताल... एक प्रकार के वाद्य की आवाज , ढ़ोल या मृदंग की ध्वनि
Subscribe to:
Post Comments (Atom)
1 comment:
आभार इस प्रस्तुति का!!
Post a Comment