Friday, November 13, 2009

मेघदूत श्लोक ३१ से ३५

मेघदूत श्लोक ३१ से ३५

भावानुवादक ..प्रो सी बी श्रीवास्तव विदग्ध


प्राप्यावन्तीन उदयनकथाकोविदग्रामवृद्धान
पूर्वोद्दिष्टाम उपसर पुरीं श्रीविशालां विशालाम
स्वल्पीभूते सुचरितफले स्वर्गिणां गां गतानां
शेषैः पुण्यैर हृतम इव दिवः कान्तिमत खण्डम एकम॥१.३१॥

अवन्ती जहां वृद्धजन ग्राम वासी
कुशल हैं कथाकार उदयन कथा के
विशद पूर्व वर्णित पुरी , पूर्ण वैभव
परं रम्य विस्तीर्ण उज्जैन जा के
जिसे पुण्य के क्षीण होते स्वतः के
गये स्वर्गजन ने धरा पर उतारा
कि मानो बचे पुण्य को मोल देकर
लिया पा यहां स्वर्ग का खण्ड प्यारा


दीर्घीकुर्वन पटु मदकलं कूजितं सारसानां
प्रत्यूषेषु स्फुटितकमलामोदमैत्रीकषायः
यत्र स्त्रीणां हरति सुरतग्लानिम अङ्गानुकूलः
शिप्रावातः प्रियतम इव प्रार्थनाचाटुकारः॥१.३२॥

जहां सारसों का कलित नादवर्धक
सदा प्रात प्रमुदित कमल गंधवाही
कि शिप्रा समीरण सुखद, तरुणियों के
मिटाता सुरति खेद प्रिय सम सदा ही


हारांस तारांस तरलगुटिकान कोटिशः शङ्कशुक्तीः
शष्पश्यामान मरकतमणीन उन्मयूखप्ररोहान
दृष्ट्वा यस्यां विपणिरचितान विद्रुमाणां च भङ्गान
संलक्ष्यन्ते सलिलनिधयस तोयमात्रावशेषाः॥१.३३॥

जहां विपणि में हार अगणित अनेकों
सुखद शंख , सीपी , हरित मणि विनिर्मित
प्रभा पूर्ण मूंगों , तरल मोतियों से
भरेलख , जलधि भास होते प्रवंचित


प्रद्योतस्य प्रियदुहितरं वत्सराजो ऽत्र जह्रे
हैमं तालद्रुमवनम अभूद अत्र तस्यैव राज्ञः
अत्रोद्भ्रान्तः किल नलगिरिः स्तम्भम उत्पाट्य दर्पाद
इत्य आगन्तून रमयति जनो यत्र बन्धून अभिज्ञः॥१.३४॥

प्रद्योत की प्रिय सुता का , हरण
था यहां पर हुआ वत्स नरराज द्वारा
यहां ताल तरु का लगा बाग था
स्वर्ग निर्मित उसी भूप का , ख्यातिवाला
मदमस्त गजराज नलगिरि कभी
यहां भटका , यहां एक खम्भा उखाड़ा
आगत जनों को जहां विज्ञजन
यों सुनाते कथा , ले विगत का सहारा


जालोद्गीर्णैर उपचितवपुः केशसंस्कारधूपैर
बन्धुप्रीत्या भवनशिख्जिभिर दत्तनृत्योपहारः
हर्म्येष्व अस्याः कुसुमसुरभिष्व अधवखेदं नयेथा
लक्ष्मीं पश्यंल ललितवनितापादरागाङ्कितेषु॥१.३५॥

वहां सूर्य के अश्व सम नील हय हैं
जहां शैल सम उच्च गय मद प्रदर्शी
सुनिर्भीक रणवीर भट अग्रगामी
असिव्रण अलंकृत रुचिर रूपदर्शी



1 comment:

Udan Tashtari said...

विवेक भाई को इस प्रस्तुति के लिए नमन!!