महाकवि कालिदास के मूल संस्कृत रघुवंश के प्रथम सर्ग से श्लोक ४१ से ५० तक का प्रो. सी. बी श्रीवास्तव "विदग्ध" कृत हिन्दी श्लोकशः पद्यानुवाद ..संस्कृत श्लोक सहित ...
श्रेणीबन्धाद्वितन्विभ्दरस्तम्भां तोरणस्त्रजम् ं
सारसै: कलनिहाZदै : ôचिदुन्नमिताननौ ।।
पंक्ति बद्ध बिखरी हुई तोरण सी अभिराम
सार के कल नाद सुन आनन उठा कलाम ।। 41।।
पवनस्यानुकूलत्वात्प्रार्थनासिद्धिशंसिन: !
रजोभिस्तुरगोत्कीण्ौरस्पृष्टालकवेष्टनौ ।।
अश्व खुरों की धूल से भरें अलक औं बाल
लखत पवन प्रवाह से काम सिद्धि तत्काल ।। 42।।
सरसीष्वरविन्दानां वीचिविक्षोभशीतलम् ।
आमोदमुपजिघ्रन्तौ स्वनि:Üवासानुकारिणम् ।।
वीचि विताहित जलज सी सर में व्याप्त सुवास
अपनी श्वासं सदृश मधुर पीकर शीतल वात ।। 43।।
ग्रामेष्वात्मविसृष्टेषु यूपचिन्हेषु यज्वनाम् ।
अमोघा: प्रतिगृह्रन्तावध्र्यानुपदमाशिष: ।।
यूप चिन्ह लख ग्राम में सकल मनोरथ जान
अध्र्य सहज स्वीकार कर सबको आशिष मान ।। 44।।
हैयंगवीनमादाय घोषवृद्धानुपस्थितान् ।
नामधेयानि पृच्छन्तौ वन्यानां मार्गशाखिनाम् ।।
ले नवनीत उपस्थित वयोवृद्ध गोपाल
से परिचय पा मार्ग का पूंंछ तॉंछ कर हाल ।। 45।।
काप्यभिख्या तयोरासीह्रजतो: शुद्धवेषयो : ।
हिमनिमुZक्तयोयोZगे चित्राचन्द्रमसोरिव ।।
चलते पथ शुचि वेश में होते थे यों भास
जैसे चित्रा - चन्द्र हों , शुचि निरभ्र आकाश ।। 46।।
तत्तभ्दूमिपति: पत्न्यै दशZयिन्प्रयदशZन: ।
अपि ल³घतमध्वानं बुबुधे न बुधोपम: ।।
दिखलाते पथ में मिले प्रिय को रम्य स्थान
सारा पथ यों कट गया , रहा न नृप को ध्यान ।। 47।।
स दुष्प्रापयशा: प्रापदाश्रमं श्रान्तवाहन: ।
सायं संयमिनस्तस्य महषेंZर्महिषीसख: ।।
कीर्तिमान भूपाल तब थकें हुये बेहाल
पहुंच रानी सहित , मुनि - आश्रम सायंकाल ।। 48।।
वनान्तरादृपावृतै: समित्कुशफलाहरै : ।
पूर्यमाणमट्टश्याग्निप्रत्युद्यातैस्तपस्विभि: ।।
समिधा कुश फल आदि ले लौटे वन से लोग
देखा ताप सवृंद का अग्नि प्रज्वलन योग ।। 49।।
आकीर्णमृषिपत्नीनामुटजद्वाररोधिभि: ।
अपत्यैरिव नीवारभागधेयोचितैमृZगै: ।।
उरज द्वार को रोककर मुनि पत्नी के पास
बाल मृगों को पुत्रवत चरते कोमल घास ।। 50।।
Hindi poetic translation of great Sanskrit books.. Kalidas is considered as the greatest Indian poet of Sanskrit. Meghdootam and Raghuvansham are two of his world fame books. Shreemadbhagwat Geeta is the greatest spiritual book the world has ever known. These books are in Sanskrit.Prof C.B.Shrivastava of Jabalpur has translated Meghdootam , Raghuvansham , and Bhagwat Geeta in Hindi poetry . Mr Shrivastava told that he is in search of a reputed publisher forthese books.
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1 comment:
उम्दा प्रस्तुति..आभार!!
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