Tuesday, January 20, 2009

।। कवि कुल गुरू महा कवि कालिदास कृत रघुवंश महाकाव्य का हिंदी पद्यानुवाद ।।

महाकवि श्री कालिदास रचित


महाकवि श्री कालिदास रचित
रघुवंशम्


।। कवि कुल गुरू महा कवि कालिदास कृत रघुवंश महाकाव्य का हिंदी पद्यानुवाद ।।

।। श्री : ।।
रघुवंशम् ।

हिन्दी पद्यानुवादक
प्रो. चित्रभूषण श्रीवास्तव `विदग्ध´
सी ६ , विद्युत मंडल कालोनी , रामपुर , जबलपुर म.प्र.
भारत








: प्रधान कार्यालय :
: विकास प्रकाशन महिष्मति , मण्डला म. प्र. :
विवेक सदन नर्मदागंज मंडला म.प्र. 481661
फोन ०७६१२६६२०५२
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बी. - 308 , साबरमती आपार्टमैन्ट्स , सहकार ग्राम
कांदीवली (पूर्व) मुंबई 400 001
सर्वाधिकार सुरक्षित

।। श्री : ।।
रघुवंशम् ।
संजीविन्या समेतम् ।


प्रो. चित्रभूषण श्रीवास्तव `विदग्ध´
अनुवाद
भूतपूर्व प्राध्यापक प्रांतीय शिक्षण महाविद्यालय , जबलपुर म.प्र.

ई मेल : vivekranjan.vinamra@gmail.com
mob 09425484452

पुस्तक के रूप में प्रकाशक चाहिये .

लेखक से प्रकाशन अधिकार प्राप्त करने हेतु संपर्क करें .
ई मेल : vivekranjan.vinamra@gmail.com
mob 09425484452


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आमुख

महाकवि कालीदास एक चिर अनंत काल के कवि हैं । जिनकी भाषा प्राष्कृत परिमार्जित एवं जीवंत है । महाकवि कालीदास के अनेकानेक कार्यो का समय समय पर मूर्धन्य विद्वान अनेकानेक भारतीय भाषाओं में लोकहित में रूपांतरण करते आएं है । इसी श्रृंखला में यह वर्तमान प्रस्तुति जाने माने विद्वान प्रो. सी.बी. श्रीवास्तव विदग्ध जी ने उम्र के एक बड़े पडाव पर आकर इसे पूर्ण करा है जो की अपने आप में उनकी साधना के ज्ञान एंव निचोड तथा ऊर्जाओं का एक अनूठा उदाहरण है । यह सदा सदा भारतवर्ष की एक अभिन्न सम्पत्ति रहेगी ।

मैं उम्मीद करता हूं की इस महान कार्य को भारत सरकार अपने हाथ में लेकर चार चॉद लगा देगी और साथ ही सरकार या प्रकाशक इसे देश विदेश की तमाम अनेक भाषाओं में अब तैयार करवा करके भारतीय संस्कृति के प्रचार प्रसार हेतु कोई कसर नही छोड़ेगें ।
मैं प्रयत्नशील रहूंगा कि प्रतिदिन १० मूल संस्कृत श्लोको का हिन्दी पद्यानुवाद धारावाहिक रूप से क्मशः इस ब्लाग पर डालता जाउँ .

अंत में समस्त विद्वान पाठक जनो को
मेरी ओर से सादर सादर प्रणाम. आपकी प्रतिक्रियाओ की प्रतिक्षा रहेगी .
धन्यवाद

विवेक रंजन श्रीवास्तव

रघुवंश सर्ग 1

वागवर्थाविव संपृक्तौ वागर्थप्रतिपत्तये ।
जगत: पितरौ वन्दे पार्वतीपरÜवरौ ।।

जग के माता - पिता जो , पार्वती - शिव नाम
शब्द - अर्थ सम एक जों , उनको विनत प्रणाम ।। 1 ।।

ô सूर्यप्रभवो वंश: ô चाल्पविषया मति: ।
तितिर्षZुर्दस्तरं मोहाìपेनािस्म सागरम् ।।
कहॉं सूर्य कुल का विभव , कहॉं अल्प मम ज्ञान
छोटी सी नौका लिये सागर - तरण समान ।। 2 ।।

मन्द: कवियश: प्रार्थी गमिष्याम्युपहास्यताम् ।
प्रांशुलभ्ये फले लोभादुद्वाहुरिव वामन : ।।
मूढ़ कहा जाये न कवि , हो न कहीं उपहास
बौना जैसे भुज उठा धरे दूर फल आस ।। 3 ।।

अथवा कृतवाग्द्वारे वंशे•िस्मन्पूर्वसूरिभि : ।
मणौ वज्रसमुत्कीर्ण सूत्रस्येवास्ति मे गति: ।।
किन्तु पूर्व कवि से मिल े बेधित मणि सायास
एक सूत्र में गूंथने का है नम्र प्रयास ।। 4 ।।

सो•हमाजन्मशुद्धानामाफलोदयकर्मणाम् ।
आसमुद्रक्षितीशानामानाकरथवत्र्मनाम् ।।
जन्मजात संस्कार युत , सुफल हेतु कर्मेश
सागर तक फैली धरा के शासक सूयेZश ।। 5।।

यथा विधिहुताग्रीनां यथाकामार्चितार्थिनाम् ।
यथापराधदण्डानां यथाकालप्रबोधिनाम् ।।
देवापासक यथोचित याचक को दे दान
दुष्टों को जो दण्ड दें , समयोचित धर ध्यान ।। 6 ।।




त्यागाय संभृताथाZनां सत्याय मितभाषिणाम् ।
यशसे विजिगीषूणां प्रजायै गृहमेधिनाम् ।।
जिनका धन नित दान हितं , मितभाषी सद्धर्म
यशोकामना से विजय , प्रजा हेतु गृहकर्म ।। 7।।

शैशवे•भ्यस्तविद्यानां यौवने विषयैविषणाम् ।
वार्धके मृनिवृत्तीनां योगेनान्ते तनुत्यजाम् ।।
शैशव विद्याध्यास में , यौवन में अनुराग
वानप्रस्थ ढलती उमर , योगी हो तब त्याग ।। 8।।

रघूणामन्वयं वक्ष्ये तनुवािग्वभवो•पि सन् ।
तहुण्ौ: कर्णमागत्य चापलाय प्रचोदित: ।।
ऐसे रघुकुल नृपों का सुनकर सुयश महान
होकर उत्सुक , प्रेषित , करता हूंं गुणगान ।। 9।।

तं सन्त: श्रेातुमहZन्ति सदसद्वयक्तिहेतव: ।
हेम्न: संलक्ष्यते हाग्नौ विशुद्धि: श्यामिकापि वा ।।
गुण - अवगुण की परख खुद करें सुधी श्रीमान
सोने की गुण - दोष की अग्नि करे पहचान ।। 10।।

2 comments:

अनुनाद सिंह said...

बढ़िया कार्य आरम्भ हुआ है। बधाई।

Udan Tashtari said...

आभार!!