मेघदूतम् हिन्दी पद्यानुवाद... by Prof. C.B. Shrivastava
16..to..20
त्वय्य आयन्तं कृषिफलम इति भ्रूविकारान अभिज्ञैः
प्रीतिस्निग्धैर्जनपदवधूलोचनैः पीयमानः
सद्यःसीरोत्कषणसुरभि क्षेत्रम आरुह्य मालं
किंचित पश्चाद व्रज लघुगतिर भूय एवोत्तरेण॥१.१६॥
कृषि के तुम्हीं प्राण हो इसलिये
नित निहारे गये कृषक नारी नयन से
कर्षित , सुवासिक धरा को सरस कर
तनिक बढ़ , उधर मुड़ विचरना गगन से
त्वाम आसारप्रशमितवनोपप्लवं साधु मूर्ध्ना
वक्ष्यत्य अध्वश्रमपरिगतं सानुमान आम्रकूटः
न क्षुद्रो ऽपि प्रथमसुकृतापेक्षया संश्रयाय
प्राप्ते मित्रे भवति विमुखः किं पुनर यस तत्थोच्चैः॥१.१७॥
दावाग्नि शामित सघन वृष्टि से तृप्त
थके तुम पथिक को , सुखद शीशधारी
वहां तंग गिरि आम्रकूट करेगा
परम मित्र , सब भांति सेवा तुम्हारी
संचित विगत पुण्य की प्रेरणावश
अधम भी अतिथि से विमुख न है होता
शरणाभिलाषी , सुहृद आगमन पर
जो फिर उच्च है , बात उनकी भला क्या ?
चन्नोपान्तः परिणतफलद्योतिभिः काननाम्रैस
त्वय्य आरूढे शिखरम अचलः स्निग्धवेणीसवर्णे
नूनं यास्यत्य अमरमिथुनप्रेक्षणीयाम अवस्थां
मध्ये श्यामः स्तन इव भुवः शेषविस्तारपाण्डुः॥१.१८॥
पके आम्रफल से लदे तरु सुशोभित
सघन आम्रकूटादि वन के शिखर पर
कवरि सदृश स्निग्ध गुम्फित अलक सी
सुकोमल सुखद श्याम शोभा प्रकट कर
कुच के सृदश गौर , मुख कृष्णवर्णी
लगेगा वह गिरि , परस पा तुम्हारा
औ" रमणीक दर्शन के हित योग्य होगा
अमरगण तथा अंगनाओ के द्वारा
स्थित्वा तस्मिन वनचरवधूभुक्तकुञ्जे मुहूर्तं
तोयोत्सर्गद्रुततरगतिस तत्परं वर्त्म तीर्णः
रेवां द्रक्ष्यस्य उपलविषमे विन्ध्यपादे विशीर्णां
भक्तिच्चेदैर इव विरचितां भूतिम अङ्गे गजस्य॥१.१९॥
जहां के लता कुंज हों आदिवासी
वधू वृंद के रम्य क्रीड़ा भवन हैं
वहां दान पर्जन्य का दे वनो को
विगत भार हो आशु उड़ते पवन में
{अध्वक्लान्तं प्रतिमुखगतं सानुमानाम्रकूटस
तुङ्गेन त्वां जलद शिरसा वक्ष्यति श्लाघमानः
आसारेण त्वम अपि शमयेस तस्य नैदाघम अग्निं
सद्भावार्द्रः फलति न चिरेणोपकारो महत्सु॥१.१९अ}॥
तनिक बढ़ विषम विन्ध्य प्रांचल प्रवाही
नदी नर्मदा कल कलिल गायिनी को
गजवपु उपरि गूढ़ गड़रों सरीखी
लखोगे वहां सहसधा वाहिनी को
तस्यास तिक्तैर वनगजमदैर वासितं वान्तवृष्टिर
जम्बूकुञ्जप्रतिहतरयं तोयम आदाय गच्चेः
अन्तःसारं घन तुलयितुं नानिलः शक्ष्यति त्वां
रिक्तः सर्वो भवति हि लघुः पूर्णता गौरवाय॥१.२०॥
जल रिक्त घन , वन्य गजमद सुवासित
सघन जम्बुवन रुद्ध रेवा सलिल को
पी हो अतुल , क्योकि पाते सभी रिक्त
लघुता तथा मान पा पूर्णता को
Hindi poetic translation of great Sanskrit books.. Kalidas is considered as the greatest Indian poet of Sanskrit. Meghdootam and Raghuvansham are two of his world fame books. Shreemadbhagwat Geeta is the greatest spiritual book the world has ever known. These books are in Sanskrit.Prof C.B.Shrivastava of Jabalpur has translated Meghdootam , Raghuvansham , and Bhagwat Geeta in Hindi poetry . Mr Shrivastava told that he is in search of a reputed publisher forthese books.
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1 comment:
दीपावली, गोवर्धन-पूजा और भइया-दूज पर आपको ढेरों शुभकामनाएँ!
कृषि के तुम्हीं प्राण हो इसलिये
नित निहारे गये कृषक नारी नयन से
कर्षित , सुवासिक धरा को सरस कर
तनिक बढ़ , उधर मुड़ विचरना गगन से nice
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